सुख की परिभाषा व सीमा मैं निर्धारित नहीं कर पाता । फिर भी कुछ ऎसे क्षण अनायास टकराते हैं कि मन एक अनाम आह्लाद से भर जाता है । हमारे हृदय को क्या पुलक से भर देता है, क्या नहीं ? इसको आप क्या शब्दों की सीमा में बाँध सकते हैं ? जैसे कि पोपले मुँह यह हँसी क्या कह रही है ?
इन छवियों की निष्कलुषता स्वयं ही प्रमाण है ! यह जीवन के दो अलग अलग छोर पर हैं, पर ऎसे हास्य की कोई आयुसीमा तो होती नहीं, क्यों ? कभी उदर क्षुधा शांत होने के बाद के चेहरे की आश्वस्ति को आप पढ़ पाये हैं ? नहीं ना ? तो फिर उनमें निहित भाव आप तक कैसे प्रेषित हुआ ? आश्चर्य है !
इनको ही देखें ! अलग अलग देश, इनका अपना अलग ही परिवेश, अलग अलग भाषा फिर भी इनको आप भली भाँति पढ़ व समझ पा रहे हैं । कैसे ? निश्चित ही यह आपको किसीने सिखाया न होगा । ऎसे संप्रेषण की क्षमता यह सहज ही अपने में समेटे हैं और हम आप भी एक दूसरे को पढ़ लेते हैं ! यह सुख दुःख की भाषा आख़िरकार देश, काल, धर्म, जाति इत्यादि के बहुत ऊपर स्वतः अपने को प्रेषित कैसे कर लेती है ? आश्चर्य है, हाँ वह तो है ही !
3 जनवरी , 2009 at 6:18 पूर्वाह्न
सुबह सुबह हँसी देखी तो आशा है हमारा भी दिन हँसते हँसते बीतेगा 🙂 सच ही कहा है सुख दुख अमीरी गरीबी के मोहताज नहीं हैं ! सुप्रभात !!
3 जनवरी , 2009 at 6:54 पूर्वाह्न
Ye hansi hi sukh hai
good post
3 जनवरी , 2009 at 7:17 पूर्वाह्न
यह नैसर्गिक है, और भेद निर्मित हैं, मिथ्या हैं।
3 जनवरी , 2009 at 7:18 पूर्वाह्न
कुछ भाव नैसर्गिक होते हैं जिनके अपने गहरे मंतव्य होते हैं जैसे बच्चे का ही निश्छल हसना या मुस्कराना -वह आपका सामीप्य -सरंक्षण चाहता है क्योंकि वह एक असहाय स्थिति में है .यह केयर सालीसिटिंग रिस्पांस है और आप लहालोट हो गए -बलि जाऊं लाल पर कह कर उसे गोंदी उठा लिया -प्रकृति का मकसद हल हुआ -नए वर्ष पर इन चेहरों की सौजन्य सुलभता हेतु आभार !
3 जनवरी , 2009 at 7:33 पूर्वाह्न
Subah subah itni sari hansi..
badhiya laga sirji.. 🙂
3 जनवरी , 2009 at 7:45 पूर्वाह्न
हसी क्षणिक सुख की अभियक्ति है .
3 जनवरी , 2009 at 9:51 पूर्वाह्न
सही चयन व सहज सम्प्रेष्य।
3 जनवरी , 2009 at 11:00 पूर्वाह्न
बहुत दिलचस्प, सुखकारी पोस्ट…
3 जनवरी , 2009 at 11:54 पूर्वाह्न
यही सहज मुस्कान ही दिलो को आपस में जोड़ देती है …पर अफ़सोस यह भी बहुत महंगी हो गई है .तभी कभी कभी दिखती है .सहजता और मुस्कान अब दूर होते जा रहे हैं ..:)
3 जनवरी , 2009 at 4:13 अपराह्न
बहुत सही कहा आपने…
3 जनवरी , 2009 at 7:14 अपराह्न
एक ही दिन में दो दो पोस्ट….वो भी आपकी ये भी एक सुख है गुरुवर .वैसे सुख की कोई परिभाषा नही…..उसका कोई रूप नही…संगीत में भी वो है….बारिश की बूंदों में भी वो है…….इन तस्वीरो में तो है ही